*पूरी दुनिया में भारत का बच रहा है डंका।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एकदिवसीय दौरे के बाद वापस नई दिल्ली लौट चुके हैं। इसके पहले उन्होंने करीब 1200 करोड़ की लागत से प्रदेश के 16 स्थानों पर बनकर तैयार हुए अटल आवासीय विद्यालयों का उद्घाटन किया। काशी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित इस समारोह में उन्होंने सांसद सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रतिभागियों को सम्मानित भी किया। प्रधानमंत्री ने समारोह के दौरान अपने उद्बोधन में कहा कि काशी और संस्कृति दोनों एक ही ऊर्जा के दो नाम हैं। उन्होंने कहा कि वो पूरी दुनिया में काशी का डंका बजाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने इस बात की भी जानकारी दी कि जल्द ही काशी सांसद ज्ञान महोत्सव और काशी सांसद टूरिस्ट गाइड प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाएगा।

दुनिया कर रही भारत और काशी की चर्चा
प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘श्रीकाशी विश्वनाथ के आशीर्वाद से काशी नित्य नई ऊचाइंयां छू रहा है। जी-20 समिट के जरिए भारत ने पूरी दुनिया में अपनी नई पहचान बनाई है जिसमें काशी का विशेष योगदान रहा है। उन्होएँ मंच से एकबार फिर काशी के स्वाद को याद करते हुए कहा कि काशी की सेवा, काशी का स्वाद, काशी की संस्कृति और काशी का संगीत। जी-20 के लिए जो जो मेहमान काशी आया वो इसे अपनी यादों में समेटते हुए साथ लेकर गया है। जी 20 की अद्भुत सफलता महादेव के आशीर्वाद से ही संभव हुई है।

काशी से है आत्मीय लगाव काशी को लेकर देखा गया सपना हो रहा साकार
प्रधानमंत्री ने मंच से कहा की ‘साल 2014 में जब प्रधानमंत्री बना तो काशी के विकास की कल्पना की थी वह विकास आज धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है और साकार हो रहा है। उन्होंने बताया कि दिल्ली में व्यस्तता के बीच भी वो काशी सांसद सांस्कृतिक महोत्सव को जरूर देखते थे। कलाकारों की अद्भुत प्रस्तुतियों ने उन्हें प्रभावित किया। उन्हें इस क्षेत्र की प्रतिभाओं से सीधा जुड़ने का अवसर मिला। प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाले वर्षों में ये सांस्कृतिक महोत्सव काशी की अलग पहचान बनने वाला है। उन्होंने कहा कि ये नटराज की अपनी नगरी है। सारी नृत्य कलाएं नटराज के तांडव से प्रगट हुई हैं। सारे स्वर महादेव के डमरू से उत्पन्न हुए हैं

काशी अद्भुत अविस्मरणीय है सुरों में समाई हुई है काशी
इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘चाहे घर की बैठकी हो या बजरे पर बुढ़वा मंगल, भरत मिलाप हो या नाग नथैया, संकटमोचन संगीत समारोह हो या देव दीपावली, सबकुछ सुरों में समाया हुआ है। काशी में शास्त्रीय संगीत की जितनी गौरवशाली परंपरा है उतने ही अद्भुत यहां के लोकगीत हैं। उन्होंने बनारस के संगीत घरानों और संगीतज्ञों का भी बखान व गुणगान किया।

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